लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान शुक्रवार को खत्म हो गया। पहले चरण की तरह दूसरे चरण में मतदान का प्रतिशत कम रहा। लगातार दूसरे चरण में मतदान प्रतिशत कम रहने से तमाम पार्टियां अपने-अपने दावे कर रही हैं। मतदान के कम प्रतिशत के क्या मायने हैं? चुनाव को लेकर मतदाताओं में उदासीनता क्यों है?
इस हफ्ते के खबरों के खिलाड़ी में इन्हीं सवालों पर चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, अवधेश कुमार, पूर्णिमा त्रिपाठी, अनुराग वर्मा, राखी बख्शी और कात्यायनी चतुर्वेदी मौजूद रहीं।
रामकृपाल सिंह: सभी राजनीतिक दलों को यह चिंता करनी चाहिए कि आखिर मतदान का प्रतिशत कम क्यों हो रहा है? मुझे दुख के साथ यह कहना पड़ रहा है कि इसमें सभी अपने-अपने हिसाब से फायदे और नुकसान की बात कर रहे हैं। मतदाता के विवेक पर हम टिप्पणी नहीं कर सकते कि वह क्या फैसला देगा। इसके साथ ही यह जरूर कहूंगा कि यह एक दुखद विषय है। लोकतंत्र के प्रति यह उदासीनता क्यों हो रही है, इसकी चिंता आम लोगों से ज्यादा राजनीतिक दलों को होनी चाहिए।
अवधेश कुमार: जितना हम सोचते हैं, उतनी उदासीनता चुनाव में नहीं है। किसी भी देश के चुनाव में एक शिखर बिंदु होता है। हमें मानकर चलना चाहिए कि पिछला चुनाव शिखर बिंदु है। उसके बाद यह नीचे आता है। पिछली बार के मुकाबले मतदान प्रतिशत दो प्रतिशत के आसपास गिरा है। इसे हम भारी गिरावट नहीं कह सकते हैं।
राखी बख्शी: ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान ज्यादा हुआ है। शहरी इलाकों में यह कम हुआ है। यह विश्लेषण का विषय है कि चुनाव का प्रतिशत क्यों कम हो रहा है। चुनाव आयोग ने बहुत से कदम उठाए। इन सबके बीच कुछ नई चीजें हुई हैं। कुछ लोग विदेश से भी वोट डालने के लिए आए। फर्स्ट टाइम वोटर्स भी दिखाई दिए। महिलाएं भी कतारों में नजर आईं। इन सबके बाद भी मतदान प्रतिशत क्यों गिर रहा है, यह हमें देखना पड़ेगा।
कत्यायनी चतुर्वेदी: हम जिस उदासीनता की बात कर रहे हैं, पार्टियों ने शायद ऐसे उम्मीदवार नहीं दिए, जिससे मतदाता बाहर आएं। जहां तक भाजपा की बात है तो वहां चेहरा प्रधानमंत्री मोदी हैं। उनके सामने बाकी उम्मीदवार गौण हो जाते हैं। दो-चार प्रतिशत ऊपर-नीचे चलता रहा है। वहीं, महिलाओं की बात करें तो उन्होंने बढ़चढ़कर मतदान किया है। मुझे लगता है कि आने वाले चरणों में यह मतदान प्रतिशत बढ़ेगा।
पूर्णिमा त्रिपाठी: कम वोटिंग हो या ज्यादा वोटिंग हो, किसे फायदा होगा, किसे नुकसान होगा? इसका कोई निश्चित फॉर्मूला नहीं है। एक तरफ का वोटर जिसे लगता है कि 400 सीट तो आ ही रही है तो हम क्यों गर्मी में परेशान हों, चार तारीख को घर में बैठकर नतीजे देख लेंगे। वहीं, दूसरी तरफ का वोटर जो बदलाव चाह रहा है, उसकी उम्मीद घटती जा रही है तो उसने भी दूरी बना ली।
विनोद अग्निहोत्री: मुझे लगता है कि पूरे हिन्दुस्तान में कोई मुद्दा है तो वो उदासीनता का है। डाटा कहता है कि पहली बार के मतदाताओं में से 62 फीसदी ने अपना पंजीकरण तक नहीं कराया है। यह राजनीतिक दलों के लिए सोचने का विषय है। यह पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए चिंता का विषय है। 2019 और 2024 में फर्क यह भी है कि 2024 में राहुल गांधी वैसे मुद्दा नहीं हैं, जैसे 2019 में थे। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग चेहरे पर विपक्ष लड़ रहा है। वोटिंग कम होने का एक बड़ा कारण यह है कि मतदाताओं में न तो पक्ष के प्रति, न ही विपक्ष के प्रति कोई उत्साह है।