Murshidabad Ground Report Know What Are Political Equations Here – Amar Ujala Hindi News Live


Murshidabad Ground Report Know what are political equations here

ग्राउंड रिपोर्ट।
– फोटो : amar ujala

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मुर्शिद के फैज से तिरा नाम ओ वकार है

तुझ से को वर्ना कोई कभी पूछता न था

-सैयद फैजान वारसी

मुर्शिदाबाद ने मुगलों के दौर में अपना वकार (शान) देखा है, लेकिन वह वक्त ढल चुका है। अब इसकी वह पूछ रही न कदर, न वो मुर्शिद (शिक्षक/गाइड) रहे। कभी मलमल, तो अब मारधाड़ के लिए मशहूर जिला मुर्शिदाबाद बांग्लादेश से सटा है। इस कारण देश तो देश, पड़ोसी देश की भी यहां नजर रहती है। यहां बात-बात पर बात बिगड़ती रहती है। रामनवमी पर निकाली गई शोभायात्राओं के दौरान दो समुदायों के बीच ऐसी हिंसक झड़पें हुईं कि लोकसभा चुनाव ही खतरे में पड़ गया। यहां के चंद बिगड़ैल बाशिंदों को सबक सिखाने के लिए हाईकोर्ट को खुद मुर्शिद की भूमिका में आकर यह तक कहना पड़ा कि इन लोगों को किसी जनप्रतिनिधि की जरूरत ही नहीं।

इस शहर को मुगल बादशाह अकबर ने 16वीं सदी में बसाया था। औरंगजेब के शासनकाल में नवाब मुर्शिद कुली खान ने ढाका की जगह मुर्शिदाबाद को बंगाल की राजधानी बनाया और नाम मखसूदाबाद से मुर्शिदाबाद हो गया। यहां करीब 70 फीसदी मुस्लिम आबादी है और यही वजह है कि पार्टी कोई भी रही हो, कांग्रेस, माकपा या तृणमूल, सांसद हमेशा मुस्लिम ही रहा है। यहां समस्याएं तो बेशुमार हैं, पर बांग्लादेशियों की बड़ी तादाद के कारण यहां नागरिकता कानून (सीएए) ही सबसे बड़ा मुद्दा है। हिंदू मतदाताओं के बीच राममंदिर का असर दिखता है।

यह क्षेत्र माकपा और कांग्रेस का गढ़ रहा है। पिछले करीब 40 साल को देखें तो 1980 से 2004 तक माकपा और 2004 से 2014 तक कांग्रेस का कब्जा रहा। वक्त का फेर देखिए कि अब इन दोनों दिग्गज दलों की हालत यह हो गई है कि इस चुनाव में दोनों साथ आकर तृणमूल से लड़ रहे हैं। पिछला चुनाव सवा दो लाख से ज्यादा वोटों से तृणमूल ने फतह कर अश्वमेध के घोड़े को बांधा। इस चुनाव में मुस्लिमों का ध्रुवीकरण उनके पक्ष में हुआ, तो तृणमूल प्रत्याशी िफर बाजी मार सकते हैं। यों, माकपा के धुरंधर नेता मो. सलीम भी पूरा जोर लगाए हैं। कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक का भी उन्हें आसरा है। राज्य में मुस्लिमों के बीच ओवैसी की तर्ज पर तेजी से पैठ बनाती पार्टी आईएसएफ ने हबीब शेख को उतारकर मुकाबला रोचक बना दिया है। यह दल मुस्लिमों के मुद्दों पर फोकस कर राजनीति करता है।

वोट बंटवारे पर भाजपा की नजर

भाजपा की पूरी आस मुस्लिम प्रत्याशियों की लड़ाई में वोट बंटवारे से लाभ उठाने की है। भाजपा के गौरीशंकर घोष यहां से विधायक तो हैं, लेकिन टक्कर देने में कमजोर दिखते हैं। हिंदू वोटरों को अपने पक्ष में एकजुट करने के लिए भाजपा ने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को यहां उतार दिया है। 30 अप्रैल को जनसभा में योगी ने राममंदिर व हिंदू भावनाओं को केंद्र में रखा और आबादी के असंतुलन का मुद्दा उठाया। उन्होंने साजिशन बांग्लादेशियों को यहां बसाने का ममता सरकार पर आरोप भी लगाया। भाजपा चुनाव दर चुनाव यहां वोट बैंक बढ़ा रही है।

ध्रुवीकरण एकदम स्पष्ट

यहां साफ-सीधा-सपाट ध्रुवीकरण दिखता है। मुस्लिम दीदी को एकतरफा वोट देने की बात करते हैं। संसदीय क्षेत्र में सात विधानसभा सीटें हैं, जिसमें महज एक ही भाजपा के पास है। बाकी सभी तृणमूल के पास। ज्यादातर समय यहां माकपा के ही सांसद रहे। पिछले चुनाव में तत्कालीन माकपा सांसद बदरुद्दोजा खान के मुकाबले भाजपा ने हुमायूं कबीर को उतारा था। कांग्रेस से अबू हेना और तृणमूल से ताहेर खान मैदान में थे।

जाली नोट बड़ी समस्या

जिले का इतिहास रक्तरंजित है। मारकाट यहां की पहचान है। अंतरराष्ट्रीय सीमा पर गो तस्करों व बीएसएफ की अक्सर भिड़ंत होती रहती है। सीमापार से आने वाले जाली नोट बड़ी समस्या है। पंचायत चुनाव बिना खूनखराबे के पूरे नहीं होते। चौकसी और ऐहतियात के बाद भी जिला मुख्यालय बहरामपुर में रामनवमी पर हुई हिंसा के बाद तो हाईकोर्ट की टिप्पणी थी कि अगर उत्सव के दौरान लोग छह घंटे की शांति नहीं कायम रख सकते, तो चुनाव की क्या जरूरत है। कोर्ट ने चुनाव आयोग को ऐसा प्रस्ताव तक भेजने का आदेश दे दिया। इस पर तनातनी और बयानबाजी भी खूब हुई। तृणमूल प्रमुख व सीएम ममता बनर्जी ने सवाल उठाया कि हथियार लेकर शोभायात्रा क्यों निकाल रहे थे, आपको मस्जिद पर हमला करने का अधिकार किसने दिया। आयोग ने डीआईजी को हटा दिया। तब ममता ने कहा, दंगा हुआ, तो आयोग ही जिम्मेदार होगा।

मन की खाई बढ़ी, पुल दरकिनार

चुनाव में दो समुदायों में खाई ऐसी बढ़ी कि एक अदद पुल की जरूरत पीछे छूट गई है। यहां की बड़ी आबादी भागीरथी नदी के उस पार रहती है, लेकिन पुल न होने से नावों से आवाजाही और ढुलाई होती है। ताहेर भी इस भरोसे हैं कि एकतरफा-एकमुश्त मुस्लिम वोट उनकी नैया पार लगा देगा। नदी पार के व्यवसायी मुस्तकीन अंसारी कहते हैं, अरसे से पुल की मांग हो रही है, वादे भी किए जाते हैं, लेकिन थोड़े-बहुत हो-हल्ले के बाद खामोशी छा जाती है। विकास के काम कम हुए हैं। बड़ी आबादी बेहद गरीब है और बीड़ी बनाकर गुजारा करती है।

ये बढ़ते गए, वो लुढ़कते गए (2019 का रिजल्ट)

  • 2019 में तृणमूल ने 20% वोटवृद्धि के साथ 41.50% मत पाकर जीत हासिल की।
  • भाजपा के वोट में 9% का इजाफा, 17% से ज्यादा वोट मिले।
  • 2014 में 33% से ज्यादा मत पाकर जीती माकपा के वोट 21% से ज्यादा कम
  • 2009 में 47% वोट पाकर जीतने वाली कांग्रेस को 26% वोट ही मिले।



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