Sneha Desai Attends Screenwriters Association Vartalaap Opens Up On Writing Process Of Laaptaa Ladies – Entertainment News: Amar Ujala


आमिर खान की बतौर निर्माता बनाई निर्देशक किरण राव की फिल्म ‘लापता लेडीज’ सिनेमाघरों से निकलकर अब ओटीटी पर पहुंच चुकी है। फिल्म की तारीफ इसकी पटकथा को लेकर भी खूब हो रही हैं। ये पटकथा लिखने वाली स्नेहा देसाई के बारे में फिल्म जगत के लोग भी बहुत कम जानते हैं। ऐसे में जब वह स्क्रीनराइटर्स एसोसिएशन के अरसे बाद हुए ‘वार्तालाप’ की नई कड़ी में लेखकों से मिलने पहुंची तो मुंबई का वेदा कुनबा थियेटर खचाखच भरा नजर आया। स्नेहा ने इस दौरान फिल्म लेखन की तकनीकों को लेकर चलने वाली चर्चा पर तो चौंकाने वाली बातें बताई हीं, उन्होंने खुलकर ये भी बताया कि फिल्म ‘लापता लेडीज’ उन्हें मिली कैसे..पढ़िए किस्से बहुत दिलचस्प हैं। स्नेहा देसाई की अब तक की कहानी, उन्हीं की जुबानी…




पति के कहने पर आई मनोरंजन जगत में

फिल्मों से मेरा दूर दूर तक कोई नाता नहीं है। मुंबई के प्रतिष्ठित कॉलेजों में गिने जाने वाले नरसी मोनजी इंस्टीट्यूट से मैंने स्नातक और परास्नातक किया। और, कॉलेज में टॉप करने के बाद मुझे एक अंतर्राष्ट्रीय कंपनी से बढ़िया पैकेज भी ऑफर हुआ। फिर उन्हीं दिनों मेरी शादी की बात तय हो गई। मेरे पति आलाप देसाई और उनका पूरा परिवार रंगमंच पर संगीत से जुड़ा है। उन्होंने कहा कि हमारा पूरा परिवार गीत-संगीत और रंगमंच से जुड़ा है तो ऐसे में घर का कोई एक सदस्य दफ्तर की नौकरी करेगा, तो मामला थोड़ा जमेगा नहीं। बस मैंने नौकरी करने का ख्याल दिल से निकाल दिया।


मित्रों के कहने पर शुरू किया लेखन

अगर आप पूछेंगे कि लिखने की शुरुआत कहां से हुई तो इसकी भी दिलचस्प कहानी है। गुजराती नाटकों को लेकर मुंबई में लोगों का जो क्रेज है, वह सब जानते ही हैं। इन नाटकों में मुझे कई बार कोई चीज समझ आती और मैं अपने मित्रों से इसकी चर्चा करती। शादी के बाद मैं गर्भवती थी और उन्हीं दिनों इन मित्रों ने ही कहना शुरू किया कि जब विचार इतने अच्छे हैं तो फिर लिखती क्यों नहीं? शुरू में डर तो लगा लेकिन जो लिखा, उसे लोगों ने सराहा और फिर सिलसिला चल निकला। इन्हें लिखने में मुझे आनंद भी खूब आने लगा था।

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यूं मिला धारावाहिक लिखने का मौका

ये नाटक देखने के बाद टेलीविजन धारावाहिक बनाने वाले आतिश कपाड़िया और जे डी मजीठिया ने मुझे धारावाहिक लिखने का प्रस्ताव दिया और वहां से मैंने ‘वागले की दुनिया’ और ‘पुष्पा इंपॉसिबल’ लिखना शुरू किया। टेलीविजन लिखने वाले लेखकों को अक्सर फिल्मों में मौके आसानी से नहीं मिलते। एक दीवार सी बनी हुई है इस शहर में टीवी के लिए लिखने वालों और फिल्म के लिए लिखने वालों के बीच। और, ओटीटी ने इस दीवार को और मजबूत ये कह कहकर कर दिया है कि टीवी वाले ओटीटी नहीं बना सकते।

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और, फिर आया यशराज फिल्म्स से बुलावा

खैर, मेरी गुजराती पृष्ठभूमि, धारावाहिक और नाटकों के चलते ही मुझे आमिर खान के बेटे जुनैद की पहली फिल्म ‘महाराज’ में भाषागत बारीकियों को ठीक करने के लिए बुलाया गया। ये फिल्म बना रही कंपनी यशराज फिल्म्स ने फिर धीरे धीरे मुझे संवाद लेखन में भी शामिल किया और यहीं मेरा आमिर खान से संपर्क हुआ। फिल्म ‘महाराज’ साल 1903 के बंबई की कहानी है। ये जुनैद की डेब्यू फिल्म है और चूंकि उनके किरदार का लहजा गुजराती है, तो इसी सिलसिले में मेरी इस फिल्म में एंट्री हुई।

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