एमसीडी मुख्यालय
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नगर निगम के मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव अब शुक्रवार को नहीं होगा। उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने पीठासीन अधिकारी नियुक्त नहीं किया है। इसके पीछे उपराज्यपाल ने दिल्ली सरकार की ओर से भेजी गई फाइल पर मुख्यमंत्री की राय नहीं होने का हवाला दिया है। ऐसे में एमसीडी ने मेयर चुनाव स्थगित कर दिया। हालांकि, सदन की बैठक तय कार्यक्रम के तहत 11 बजे होगी।
उपराज्यपाल ने पीठासीन अधिकारी नियुक्त करने वाली फाइल लौटाते हुए मुख्यमंत्री के जेल में बंद होने व आप का नाम लिए बिना उनकी ओर सेे पीठासीन अधिकारी नियुक्त नहीं करने के संबंध में लगाए जा रहे आरोपों की चर्चा की।
उपराज्यपाल ने कहा कि मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के मामले में एक विचाराधीन कैदी के रूप में न्यायिक हिरासत में हैं और वह सांविधानिक रूप से अपने कार्यों का निर्वहन नहीं कर सकते। इस स्थिति में उन्होंने गहन विचार करने के बाद कानून और संविधान के प्रावधान की पवित्रता को बनाए रखने के मद्देनजर पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति के संबंध में निर्णय लिया है। फाइल में मुख्यमंत्री की राय उपलब्ध नहीं है। लिहाजा, संबंधित मंत्री बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैंं।
उपराज्यपाल ने कहा कि मुख्यमंत्री की राय के अभाव में पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति के लिए वे अपनी शक्ति का इस्तेमाल करना उचित नहीं समझते। इस कारण मेयर आैर डिप्टी मेयर का प्रस्तावित चुनाव स्थगित कर दिया जाया। उपराज्यपाल ने निर्देश दिए कि नए मेयर का चुनाव न होने की स्थिति में एमसीडी का कामकाज प्रभावित नहीं होना चाहिए। वर्तमान मेयर व डिप्टी मेयर अपने उत्तराधिकारी के चुनाव तक पद पर बने रहेंगे।
नए वित्तीय वर्ष की पहली बैठक में चुनाव का है प्रावधान
एमसीडी एक्ट के तहत नए वित्तीय वर्ष के दौरान पहली बैठक में मेयर का चुनाव कराने का प्रावधान है। एक्ट में मेयर का चुनाव कराने के लिए उपराज्यपाल की ओर से पीठासीन अधिकारी नियुक्त करने का नियम है। इस तरह वर्ष 1958 से एमसीडी का सदन अस्तित्व में होने की स्थिति में प्रत्येक वर्ष (वर्ष 2020 को छोड़कर) अप्रैल में होने वाली सदन की पहली बैठक में मेयर का चुनाव हो रहा था। वर्ष 2020 में कोरोना के कारण अप्रैल की जगह जुलाई में पहली बैठक बुलाई गई थी। हालांकि, एक्ट के तहत प्रति माह सदन की कम से कम एक बैठक बुलाना आवश्यक है।
नहीं मिलेगा दलित मेयर, भाजपा ने किया समाज का अपमान : आप
आप के एमसीडी प्रभारी दुर्गेश पाठक ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि दिल्ली को शुक्रवार को दलित समाज के पार्षद के तौर पर मेयर मिल जाता, लेकिन उपराज्यपाल ने ऐन वक्त पर चुनाव रद्द कर दिया, जबकि चुनाव आयोग ने चुनाव कराने की अनुमति दी थी। चुनाव रद्द करवाकर भाजपा ने दलित समाज का अपमान किया है। दलित समाज के पार्षद को पांच साल में केवल एक साल दिल्ली का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलता है। भाजपा इसे भी छीन रही है।
एलजी ने चुनाव रद्द करने का कारण मुख्यमंत्री की सलाह पर काम करने का हवाला दिया है, जबकि मुख्यमंत्री की ओर से दिल्ली के हक में दी गई हजारों सलाह पर उन्होंने आज तक काम नहीं किया। इस तरह उनका मुख्यमंत्री की सलाह पर काम करने की बात कहना मजाक लग रहा है। आप विधायक विशेष रवि ने कहा कि एमसीडी में आप का दलित मेयर बनने पर भाजपा को लोकसभा चुनाव में बुरी तरह से हार का डर लग रहा है। भाजपा संविधान में स्थापित नियमों कानून को तोड़ रही है। दलित समाज 25 मई को लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराकर इसका बदला लेगा। आप विधायक रोहित मेहरोलिया ने कहा कि मेयर चुनाव के लिए आप के पास पूर्ण बहुमत है। जानबूझकर एक साजिश के तहत उपराज्यपाल ने यह चुनाव रोकने का दुस्साहस किया है।
मेयर चुनाव में गड़बड़ी की साजिश : सौरभ भारद्वाज
मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कहा कि कुछ दिन पहले चंडीगढ़ के मेयर चुनाव में वोटों में गड़बड़ी करके भाजपा ने अपना मेयर बनाने की कोशिश की थी। इसी तरह गत वर्ष एमसीडी में भाजपा ने मेयर बनाने की कोशिश की थी। इस बार भी भाजपा गड़बड़ी करना चाहती है। पीठासीन अधिकारी नियुक्त न कर उपराज्यपाल ने दशकों पुरानी परंपरा को तोड़ा है। नियम के अनुसार पीठासीन अधिकारी नियुक्त करने की फाइल मुख्य सचिव की ओर से शहरी विकास मंत्री को भेजी जाती है और शहरी विकास मंत्री के कार्यालय से फिर मुख्यमंत्री कार्यालय को भेजी जाती है। इसके बाद मुख्यमंत्री कार्यालय से उपराज्यपाल के कार्यालय फाइल जाती है, लेकिन इस बार उस प्रक्रिया को दरकिनार किया गया है।
मुख्यमंत्री बने रहने की जिद से हुई परेशानी : भाजपा
प्रदेश भाजपा प्रवक्ता प्रवीण शंकर कपूर ने बृहस्पतिवार को कहा कि आप नेता दुर्गेश पाठक व सौरभ भारद्वाज निगम चुनाव के लिए पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति पर विवाद उठा रहे हैं। उन्हें दिल्ली वालों को बताना चाहिए कि बिना पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति के एमसीडी मेयर चुनाव क्यों घोषित किया गया। विधायकों का एमसीडी सदन में नामांकन भी विवादित है, क्योंकि उसमें भी नियमानुसार फाइल पर मुख्यमंत्री की सिफारिश होनी चाहिए थी जो इस बार नहीं है। निगमायुक्त और निगम सचिव नहीं चाहते थे कि बिना स्वीकृति के चुनाव की घोषणा की जाए। सत्ताधारी आप के नेताओं ने दबाव डालकर घोषणा करवाई और उसी का परिणाम है कि अब चुनाव को लेकर समस्या आ रही हैं। निगम प्रशासन नियमानुसार पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति की फाइल मुख्य सचिव से मुख्यमंत्री फिर मुख्य सचिव और उपराज्यपाल को जानी होती है, लेकिन मुख्यमंत्री के जेल में होने से समस्या उत्पन्न हुई है। केजरीवाल के मुख्यमंत्री बने रहने की जिद्द की वजह से यह परेशानी हुई है।