अखिलेश यादव
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15 साल बाद दोबारा कन्नौज से संसदीय पारी शुरू करने वाले अखिलेश यादव के लिए यह सीट हमेशा से लकी रही है। यहां से दूसरी पारी शुरू करने पर न सिर्फ वह अपने गढ़ को दोबारा हासिल करने में कामयाब हुए, बल्कि सपा भी देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है।
अखिलेश यादव जब-जब कन्नौज से चुनाव लड़े, पार्टी को बड़ी कामयाबी मिली। वर्ष 2000 में हुए उपचुनाव में यहीं से उन्होंने अपने सियासी कॅरिअर का आगाज किया था। पिता मुलायम सिंह यादव की छोड़ी हुई सीट पर पहली बार जीत कर संसद पहुंचे थे। 2004 में हुए चुनाव में न केवल खुद करीब तीन लाख वोटों के अंतर से जीते थे, उस समय सपा प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनी थी।
2009 के लोकसभा चुनाव में भी सपा प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। इस बार भी इस सीट से न सिर्फ उन्होंने सबसे ज्यादा चार बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड बनाया, बल्कि सपा फिर से प्रदेश की सबसे बड़ी और देश की तीसरी बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। सपा जिलाध्यक्ष कलीम खान कहते हैं, पार्टी मुखिया अखिलेश यादव कन्नौज के सांसद के रूप में आवाज उठाएंगे।
कन्नौज से दिली लगाव को जाहिर करते रहे हैं… न सिर्फ चुनाव लड़ने के दौरान बल्कि उसके पहले भी अखिलेश कन्नौज से अपने रिश्ते को गर्मजोशी के साथ साझा करते रहे हैं। चुनाव में प्रचार के दौरान उन्होंने अपने पहले चुनाव की याद साझा करके पुराने कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाया था। उसके पहले भी कह चुके हैं यहीं से सियासत शुरू की है। यहां के हर गांव-गली से वाकिफ हूं, मैं इसे कभी नहीं छोड़ सकता।
पहली बार खुद लिया जीत का प्रमाण पत्र… इस चुनाव में एक और खास बात देखने को मिली, जो अखिलेश को कन्नौज से जोड़े रखने की तरफ इशारा करती हैं। इसके पहले की तीन बार मिली जीत के बाद कभी भी वह जीत का प्रमाण पत्र लेने यहां नहीं आए थे। इस बार नतीजा आने के दूसरे दिन लखनऊ से आकर कलेक्ट्रेट पहुंचे और डीएम शुभ्रांत शुक्ल से जीत का प्रमाण पत्र हासिल किया।
कयासबाजी का दौर रहा जारी
कन्नौज पर अखिलेश के रुख को लेकर सियासी कयासबाजी दिनभर होती रही। 2009 के चुनाव में अखिलेश कन्नौज के साथ ही फिरोजाबाद संसदीय सीट से भी चुनाव जीते थे। फिरोजाबाद से बड़ी जीत कन्नौज में मिली थी। इसलिए उन्होंने कन्नौज की सीट बरकरार रखते हुए फिरोजाबाद से इस्तीफा दिया था। इस बार वह करहल से विधायक और कन्नौज से सांसद हैं।
मुख्यमंत्री बनने पर कन्नौज के सांसद पद से देना पड़ा था इस्तीफा
2012 के विधानसभा चुनाव में जब प्रदेश में सपा को बहुमत मिला, तो अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने। उस समय वह कन्नौज से सांसद थे। मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभालने के नाते उन्हें संसद की सदस्यता छोड़नी थी। ऐसी सूरत में उन्होंने यहां से इस्तीफा दिया था। यहां से नाता बरकरार रहे, इसलिए अपनी छोड़ी हुई सीट पर हुए उपचुनाव में पत्नी डिंपल यादव को चुनाव लड़ाया था। तब वह निर्विरोध ही सांसद निर्वाचित हुई थीं।